लोग क्या कहेंगे ?
लाइफ एक रेस है तेज नही भागोगे तो कोई तुम्हे कुचल के आगे निकल जायेगा ” 3idiot
आज के इस प्रतियोगी युग में हर ब्यक्ति यही सोचता है और आगे बिना सोचे समझे , बिना चाहे , या चाहे दोड़ता जा रहा है ! हर कोई नम्बर के पीछे भाग रहा , कोई कम नंबर आने पर रो रहा है , कोई कुर्सी पर अपना नंबर लगा रहा है ऐसा लगता है कि दुनिया बस नंबर के लिए ही बनी है
आज के परिवेश में हर तरफ नंबर की मारामारी है
मैं एक सामान्य परिवार से हूँ और में पढ़ा लिखा हूँ लेकिन कुछ मजबूरियों और परिस्थितियों के कारण में अपना अध्ययन आगे नही बड़ा सका , मेरा सपना था कि में एक डॉक्टर बनू लेकिन में नही बन पाया , आज में चाहता हूँ कि मेरा बच्चा डॉक्टर बने , अब ये जरुरी नही कि बच्चा डॉक्टर बनाना चाहता है कि नही ,
ये तो सिर्फ उदहारण(example ) है
ज्यादातर माता पिता कुछ इस तरह ही सोचते हैं कि उनका लड़का या लड़की जो वो नही कर पाए वो करे या उनके पडोसी या फिर रिश्तेदार जैसा बने !
बहुत कम माँ बाप अपने बच्चों के के पसंदीदा विषय के बारे में पूछते है नहीं वो लोग कभी उनकी रुचियों (hobbies)और शौक के बारे में गौर करते है नही सोचते हैं
और अपनी मर्जी को बिना सोचे समझे उसके ऊपर थोप देते हैं
और वो अबोध न चाहते हुए भी वो करता है जिस के बारे में कभी उसने कभी नही सोचा था
और इस कारण उस बालक या बालिका जंहा होना था वंहा न होते हुए वो अनचाही जगह चला जाता है
वैसे ज्यादातर परिणाम नकारात्मक(negative) ही आते हैं
नकारात्मक में ज्यादातर छात्र असफल(unsuccessful) ही रहते हैं या अपने बारे हमेशा नकारात्मक ही सोचते रहते हैं
जब कोई छात्र असफल होता है तो उसे सबसे ज्यादा डर(feared) लगता है
उसका पडोसी (neighbor)क्या कहेगा ?
या फिर उसका रिश्तेदार(relative) क्या कहेगा ?
उसका दोस्त (friend or classmate)क्या कहेगा ?
या फिर उसके पिता जी क्या कहेंगे ?
या फिर वो अपने घर और रिश्तेदारों के सामने मुह कैसे दिखायेगा ?और वो उस गलत रास्ते(wrong way) पर चला जाता है जिसके बारे मैं किसी युवक को जाने की सोचना भी नही चाहिए
यदि अभिभावक(parents) अपने बच्चे की रूचि या फिर उसके शौक पर थोडा ध्यान दें और बालक या बालिका की रूचि के अनुसार उसे उसी क्षेत्र में भेज दें, तो हो सकता है कि जिस बुलंदी से आप प्रभावित है आप के घर में उस बुलंदी से ऊपर ही कुछ हो
क्यूँ कि विश्वनाथन आनंद जब छोटा था तो उसकी मां ने उसके शौक को देखा और ६ साल कि उम्र से ही उसे शतरंज खेलने को दी आज विश्वनाथन आनंद विश्व में नंबर १ है
अब मेरा कहना उन मेरे भाइयों से है ये समाज है कुछ न कुछ कहेगा ही यदि आप अच्छा करते है तो ये आपको आँखों में बिठा लेगा और यदि आप कंही असफल होते हैं तो कुछ न कुछ कह्गा , लेकिन हमे उनकी बातो पर नही जाना चाइए और आगे प्रयास करना चाहिए
महान कवि मैथलीशरण गुप्त ने कहा की
” नर हो न निराश करो मन को ”
आज दुनिया में कई उदाहरण हैं यदि वो भी असफल हो के या परिस्थित के सामने हथियार डाल देते तो आज वो सफल के शिखर पर नही होते , लेकिन उन्होंने हर हर परिस्थिति का सामना किया और आज उनका सफलता झुक कर सलाम कराती है जैसे की कालिदास , तुलसीदास . सचिन तेंदुलकर , धीरुभाई अम्बानी . Bill Gates ,Steave jobs ,
कभी हम एक या दो प्रयास में सोचते है अब मेरे से ये हो नही सकता है सबसे पहले बल्ब का अविष्कार थोमस अल्वा एडिसन ने किया उस बल्ब की कहानी की पीछे एक सार निकल के आता है कि हमे बस अपने सजग प्रयास बार -करते ही रहने चाहिए
क्यों कि
“कोशिश करने वालों की की कभी हार नही होती ”
जिंदगी में ये बिलकुल भी जरुरी नही की हमे सफलता एक या दो बार में मिल जाये इसलिए लगातार इसके लिए प्रयास करने वाले ही उन ऊँचाइयों को पाते है जो इन दो बातो में विश्वास करते हैं मेरे अनुसार – कठिन परिश्रम होश के साथ ,दुबारा प्रयास ,(hard-work with awareness and try again )
हो सकता है हम भी इस पूरी दुनिया को अपने परिश्रम से दुनिया को नयी रोशनी और नयी किरण देने आए हों
दिब्यांग देव शर्मा
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ग्वालियर
भारत
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